कौन अब गीत गुनगुनाता है।

छंद पढ़ता है गीत गाता है।।

आज श्रोता डिमांड करते हैं

और कवि चुटकुले सुनाता है।।

है नजाकत समय की कुछ ऐसी

पेट से भाव हार जाता है।।

और फिर कवि कहाँ से दोषी है

आप का भी दवाब आता है।।

आज के दौर में हँसा पाना

आदमी है कि खुद विधाता है।।

 दर्श देते हैं देव उतना ही

भक्त जितना प्रसाद लाता है।।

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