देश के कोने कोने में डर बैठा है।

क्या गद्दी पर एक जनावर बैठा है।।


कितना कोहरा छाया है दुपहरिया में

 शायद दिन भी ओढ़े कंबर बैठा है।।


जहां जरा जो  चूका उसका टिकट कटा 

गोया मौसम घात लगा कर बैठा है।।


इतना कुहरा इतनी ठण्डक ठिठुरन भी

जैसे जाड़ा जाल बिछा कर बैठा है।।


नए साल मे भी छाया है मातम क्यों

कौन साँप कुण्डली लगाकर बैठा है।।


उससे कहदो मौत उसे भी आएगी

कौन यहाँ पर अमृत पीकर बैठा है।।


कोरोना से कहो तुम्हारी खैर नहीं

हर हिंदुस्तानी में  शंकर बैठा है।।


सुरेश साहनी ,कानपुर

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