दिल की बस्ती तबाह की जाये।
फिर मुहब्बत की राह की जाये।।
कुछ तो रुसवाईयों के हासिल हों
अपनी हस्ती सियाह की जाये।।
आईनों से अगर मिले फुर्सत
इश्क़ पर भी निगाह की जाये।।
दर्द अपना सुना रहे है वो
किस तरह वाह वाह की जाये।।
बिन तुम्हारे है एक पल मुश्किल
जीस्त कैसे निबाह की जाये।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment