मत पूछो किस बात का डर है।

बे मौसम बरसात का डर है।।

कतराते हो दिल देने से

क्या दिल के आघात का डर है।।

ग़ैरों से  उम्मीद नहीं है

पर अपनों से  घात का डर है।।

रात सजा करती है महफ़िल

अब दिन को भी रात का डर है।।

हम ख़ुद पर काबू तो कर लें

इस दिल को जज्बात का डर है।।

दिल्ली की बातें मत पूछो

भूतों को जिन्नात का डर है। 

लोग बहुत सहमे हैं उनको

अनजाने हालात का डर है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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