ज़ख़्म भी किसलिए सजाते फिरें।

कोई तगमे हैं जो दिखाते फिरें।।


वो हमें रात दिन सताते फिरें।

और हम उनपे जां लुटाते फिरे।।


दर्द चेहरे पे दिख रहा होगा

क्या ज़रूरी है हम बताते फिरें।।


वो हमारे हैं सब तो जाने हैं

हक भला किसलिए जताते फिरें।।


जब ज़माना है दिलफरेबों का

हम भी किस किस को आज़मातें फिरें।।


तगमे/ बैज, पदक , स्मृति चिन्ह, ताम्रपत्र, तमगे

फ़रेब/ छल


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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