बन के मेरे यार पड़े हैं।
पता नहीं वे किधर खड़े हैं।।
कविता में है प्रतिरोधी स्वर
पर सत्ता के साथ खड़े हैं।।
स्वाद कसैला कैसे होगा
वे व्यंजन में दही बड़े हैं।।
मेरी पोस्ट न दिखती इनको
हैं तो चिकने मगर घड़े हैं।।
बन के मेरे यार पड़े हैं।
पता नहीं वे किधर खड़े हैं।।
कविता में है प्रतिरोधी स्वर
पर सत्ता के साथ खड़े हैं।।
स्वाद कसैला कैसे होगा
वे व्यंजन में दही बड़े हैं।।
मेरी पोस्ट न दिखती इनको
हैं तो चिकने मगर घड़े हैं।।
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