नया साल औरों के साथ मनाओगे।
या फिर बीते कल में वापस आओगे।।
धन दौलत में सचमुच ताकत होती है
प्यार-मुहब्बत में आख़िर क्या पाओगे।।
यूँ भी ज़ख़्म ज़दीद सताते रहते हैं
लगता है फिर ज़ख़्म नए दे जाओगे।।
तुमको दिल का मन्दिर महफ़िल लगता है
दिल के तन्हा घर को खाक़ सजाओगे।।
तुमको शायद नग़्मे-वफ़ा से नफ़रत है
फिर तुम कैसे गीत वफ़ा के गाओगे।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment