निर्धन का अभिशाप है सर्दी की सौगात।
रात ठिठुरती रह गयी चौराहे पर रात।।
चौराहे पर रात ठिठुरती रही बेचारी
खुले अंग प्रत्यंग लिए इक अबला नारी।।
कह सुरेश कविराय शरद ऋतु का ओछापन
धनिक मनाते जश्न यातना सहते निर्धन।।
सुरेश साहनी
निर्धन का अभिशाप है सर्दी की सौगात।
रात ठिठुरती रह गयी चौराहे पर रात।।
चौराहे पर रात ठिठुरती रही बेचारी
खुले अंग प्रत्यंग लिए इक अबला नारी।।
कह सुरेश कविराय शरद ऋतु का ओछापन
धनिक मनाते जश्न यातना सहते निर्धन।।
सुरेश साहनी
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