ग़ज़ल मेरी मेरे काबू में बिलकुल भी नहीं रहती।

कलम मेरी मेरे मौजूं में बिलकुल भी नही रहती।।

मैं जब लिखता हूँ उसके वास्ते  कुछ हर्फ़ कागज पर

ये सच है वो मेरे पहलू में बिलकुल भी नहीं रहती।।

सुरेश साहनी

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