हमारी ज़िंदगी  ही झूठ पर है।

यहां सच बोलना भी इक हुनर है।।

ये दुनिया नफ़रतों को पूजती है

मुहब्बत आज भी धीमा ज़हर है।।

मैं सेहतयाब होकर लौट आया

दुआओं में तेरी अब भी असर है।।

ज़हर पीने की आदत डाल लें हम

गृहस्थी जीस्त का लंबा सफर है।।

अभी रिश्ते भी हैं अनुबन्ध जैसे

रखो या तोड़ डालो आप पर है।।

कोई उम्मीद मत रखना किसी से

उम्मीदे ख्वाहिशों का बोझ भर है।।

ठिकाना क्या बनाते हम गदायी

ख़ुदा ख़ानाबदोशों का सदर है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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