जोड़ तोड़ कर ही लिखना है
तो तुम यह करते भी होंगे
तुम कौए को हंस दिखाने-
की कोशिश करते भी होंगे
किन्तु सभी कवितायें केवल
तुम तक ही रह जाती होंगी
कुछ शुभेच्छुओं और चारणों-
से प्रशस्ति ही पाती होंगी
जोड़ गाँठ कर शब्द गाँज कर
गीत नहीं बन पाते हैं प्रिय
ढेरों कूड़ा कंकड़ पत्थर
भवन नहीं कहलाते हैं प्रिय
बाद तुम्हारे उन गीतों को
कोई मोल न देगा प्यारे
सिवा तुम्हारे कोई अधर भी
अपने बोल न देगा प्यारे
गीतों को लिखने से पहले
भावों को जीना पड़ता है
अमिय-हलाहल सभी रसों को
यथा उचित पीना पड़ता है
सुरेशसाहनी कानपुर
Comments
Post a Comment