ज़िन्दगी अब हो गयी है हसरतों की क़ैद में।

हर खुशी दम तोड़ती है ख्वाहिशों की क़ैद में।।


ताज अपने वास्ते बनवा के वो जाता रहा

ज़ीस्त तन्हा रह गयी है वारिसों  की क़ैद में।।


अब कफ़स खुद तोड़ना चाहे है अपनी बंदिशें

नफ़्स अब घुटने लगी है खाँसियों की क़ैद में।।


बंट गए हैं आसमां भी बाद भी परवाज भी

अब परिंदे उड़ रहे हैं सरहदों की क़ैद में।।


कौन कहता है मुहब्बत बंधनों से दूर है

आज है आशिक़मिजाजी मज़हबों की क़ैद में।।


ग़म के बादल छा गए हैं कस्रेदिल पर इस तरह

ढह न जाये इश्क़ का घर बारिशों की क़ैद में।।


दिल किसी बिंदास दिल को दें तो कैसे दें अदीब

नौजवानी रह गयी है हासिलों की क़ैद में।।


सुरेश साहनी, अदीब

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है