ज़ुल्म हम पे भी कम नहीं गुज़रे।
सिर्फ़ ये है कि हम नहीं गुज़रे।।
राब्ता उस गली से क्या रखते
जिस गली से सनम नहीं गुज़रे।।
हैफ़ जिस से अदूँ रहे हम भी
इक उसी के सितम नहीं गुज़रे।।
उस को दरकार थी नुमाइश की
आप लेकर अलम नहीं गुज़रे।।
यूँ जुदाई है मौत से बढ़कर
आप के हैं सो हम नहीं गुज़रे।।
तिश्नगी थी तो लज़्ज़तें भी थीं
सर कभी कर के खम नहीं गुजरे।।
सुरेश साहनी,कानपुर
Comments
Post a Comment