सब थे अपने द्वारे साधो।
हम ही थे बंजारे साधो।।
भावों की बहरी बस्ती में
जाकर किसे पुकारे साधो।।
सच मे साथ चला क्या कोई
यूँ थे सभी हमारे साधो।।
जब दुनिया ही कंचन मृग है
कितना मन को मारे साधो।।
हार गहें मन से मत हारें
हार है मन के हारे साधो।।
मैं मैं करना मन का भ्रम है
तू ही तू कह प्यारे साधो।।
सोहम जपकर भवसागर से
ले चल नाव किनारे साधो।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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