मेरे आगे ग़ज़ल सी बैठी है।

झील वाले कंवल सी बैठी है ।।

इक क़यामत है हुस्न ज़ालिम का

और जैसे अज़ल सी बैठी है।।

ज़िंदगी की किताब लेकर वो

मुस्कुराती रहल सी बैठी है।।

इतनी आसान तो नहीं होगी

जितनी ज़्यादा सहल सी बैठी है।।

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