तुम्हे देख कर क्यों लगता है

जैसे हम कुछ हार गए हों

या अपना कुछ छूट गया हो

या ऐसा लगता है जैसे

तुम्हे समय ने मेरी किस्मत-

की  झोली से चुरा लिया है

किन्तु इसे दावे से कहना

अब जैसे बेमानी सा है....


कभी मिलो तो हो सकता है

तुमसे मिलकर मेरी आँखें

हौले से यह राज बता दें

तुम ही उनका वह सपना हो

जिसकी ख़ातिर वे बेचारी

रातों को जागा करती थीं

और  सुबह से उस रस्ते पर

दिन भर बिछी बिछी रहती थीं

जिन से होकर जिन पर चलकर

तुम आया जाया करती थी।

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