इक हसीं ख़्वाब सजाकर हमने।

कर दिया उनको मुनव्वर हमने।।

रात ख़्वाबों में वो आये फिर क्या

ओढ़ ली वस्ल की चादर हमने।।

शख़्सियत कर ली बुजुर्गों जैसी

इश्क़ में उम्र बिताकर  हमने ।।

कर दिया जैसे शहर को पत्थर

आईना खुद को बनाकर हमने।।

उनकी नज़रों में बड़ी गलती की

अपने बच्चों को पढ़ाकर हमने।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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