कलपित हय,हम सोचित हय

हम काहे न बे-रोजगार रहे।

जन धन खाता हम खुलवायित

जेहिमा सब पईसा डारि रहे।

हमते बढ़िया हैं रामलाल

हम मूढ़ वहै हुशियार रहे।

अपने बच्चन का पढ़वा के

उनहूं के भाग बिगारि रहे।।

सुरेश साहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है