ज़िन्दगी तुझसे परेशां तो हूँ।

कुछ नहीं हूँ तो क्या इंसां तो हूँ।।

क्यों न  चाहूँ मैं  तवज्जह ख़ातिर

चार दिन ही सही मेहमाँ तो हूँ।।

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