तुम  अगर एतबार पढ़ पाते।

 मेरी आंखों में प्यार पढ़ पाते।।


तुम मेरा हाथ थाम लेते तो

वक़्त रहते बुखार पढ़ पाते।।


मेरे दिल की रहल में रहते तो

हम तुम्हें बार बार पढ़ पाते।।


यूँ न् परदेश में बने रहते

तुम अगर इंतज़ार पढ़ पाते।।


गुलशने दिल हरा भरा रहता

तुम जो इसकी बहार पढ़ पाते।।


हम तुम्हें गुनगुना रहे होते

तुम जो मेरे अशआर पढ़ पाते।।


हम न बाज़ार में खड़े मिलते

हम अगर इश्तहार पढ़ पाते।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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