मेरे चेहरे की जब किताब पढ़ो।
सर्द आंखों में ग़र्क़ ख़्वाब पढ़ो।।
मेरी हालत को यूँ न समझोगे
जो अयाँ है उसे हिजाब पढ़ो।।
मेरे आमाल पढ़ न पाओगे
तुम असासे गिनो हिसाब पढ़ो।।
तो तुम्हे शाह से ही निस्बत है
जाओ ज़र्रे को आफ़ताब पढ़ो।।
हाले-हाज़िर की वज़्ह भी तुम हो
मेरा खाना भले ख़राब पढ़ो।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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