यत्र तत्र हैं सूर्पनखा की नाक काटते लोग।

अपराधों के दण्डकवन में मृत्यु बांटते लोग।।

क्या मानक हैं कैसे निर्धारित होते आदर्श।

क्या उन आदर्शो के ऐसे होते हैं प्रतिदर्श।।

राम तुम्हें

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है