दिन रहे उलझन भरे रातों रही बेचैनियां।

फागुन नहीं सावन नहीं फिर क्यूं रही हैरानियाँ।।

मैं इस गली तुम उस गली ,मैं इस डगर तुम उस डगर

इक नाम जुड़ने से तेरे इतनी मिली बदनामियाँ।।

लैला नहीं मजनू नहीं फरहाद- शीरी भी नहीं

अब आशिक़ी के नाम पर बाक़ी रहीं ऐयारियां।।

सब चाहते हैं जीस्त में सरपट डगर मिलती रहें 

पर इश्क़ ने देखा नहीं आसानियाँ दुश्वारियां।।

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