#लघुकथा - मरीज़
कल मैं शहर के व्यस्त क्षेत्र से अपने बच्चे के साथ गुज़र रहा था। सड़क पर भीड़ भाड़ यथोचित ही थी।लाल बत्ती खुल चुकी थी। तभी पीछे से अचानक एम्बुलेंस के सायरन की आवाज सुनाई पड़ी। लोग तितर बितर होने की स्थिति में आ गए। मैं भी असहज होकर और किनारे यानि लगभग सड़क से की तरह सरक आया।
कुछ देर बाद किसी सत्ताधारी दल से सम्बंधित झंडा लगाए एक एसयूवी टाइप गाड़ी गुज़री। भीड़ होने के कारण स्पीड उनके अनुसार कम ही थी। उसमें कुछेक सदरी टाइप लोग खीखी करके हँसते बतियाते दिखाई दिए। और वह गाड़ी आगे चली गयी।
बच्चे ने पूछने के अंदाज़ में बताया 'पापा ये एम्बुलेंस नहीं थी।"
मै क्या बताता। पर यह बात तो तय है कि उसमें मरीज ही थे। शायद मानसिक मरीज जो सैडिज़्म या किसी हीनता श्रेष्ठता बोध से ग्रसित रहते हैं।
सुरेश साहनी, कानपुर
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