कौन सी आरजू जिबह कर लें।
कौन सी शर्त पर सुलह कर लें।।
जुल्फ़ तेरी जो सर न हो पाए
तुम कहो और क्या फतह कर लें।।
तुम जो ख़ामोश हो तो किस दम पर
कोई फ़रयाद या जिरह कर लें।।
साथ तुम हो न चाँद है रोशन
तीरगी में कहाँ सुबह कर लें।।
जब मिले हो तो खानकाहों पर
क्या हम अपनी भी खानकह कर लें।।
तेरी ख़ातिर कहाँ कहाँ न लड़े
और किस किस से हम कलह कर लें।।
और कैसे करार पाएं हम
ख़ुद को बेफिक्र किस तरह कर लें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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