इनकी उनकी रामकहानी छोड़ो भी।
क्या दोहराना बात पुरानी छोड़ो भी।।
अक्सर ऐसी बातें होती रहती हैं
इनकी ख़ातिर ज़ंग जुबानी छोड़ो भी।।
शक-सुब्हा नाजुक रिश्तों के दुश्मन हैं
यह नासमझी ये नादानी छोड़ो भी।।
आओ मिलकर आसमान में उड़ते हैं
अब धरती की चूनरधानी छोड़ो भी।।
चटख चांदनी सिर्फ़ चार दिन रहनी है
मस्त रहो यारों गमख़्वानी छोड़ो भी।।
मर्जी मंज़िल मक़सद राहें सब अपनी
सहना ग़ैरों की मनमानी छोड़ो भी।।
दो दिन रहलो फिर अपने घर लौट चलो
मामा मौसी नाना नानी छोड़ो भी।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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