जब मेरे बिन तेरी महफ़िल सजती है।

 महफ़िल गोया तन्हा रोया करती है।।

जैसे अर्थी उठती है लावारिस की

वो महफ़िल भी कुछ ऐसे ही उठती है।।

यूँ भी महफ़िल होती है दिल वालों की

बेदिल वालों की तो मंडी चढ़ती है।।

सुरेश साहनी ,कानपुर

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