आज मेरे प्यारे मित्र हकीक भाई हम सबको छोड़ गए।
हकीकत था आज बन के फ़साना चला गया।
घर भर की नेमतों का खज़ाना चला गया।।
तन्हाइयों ने घेर लिया दिल को यकबयक
जैसे सुना कि दोस्त पुराना चला गया।।
क्यों कर कहें कि आके क़ज़ा ले गयी उसे
हक़ बात है कि जिसको था जाना चला गया।।
जाने की उस गली में तमन्ना चली गई
मिलने का था वो एक बहाना चला गया।।
तुम क्या गए हकीक कि आलम है ग़मगुसार
गोया कि नेकियों का ज़माना चला गया।।
हिन्दू मुसलमा अपने पराये से था जो दूर
गा कर मुहब्बतों का तराना चला गया।।
कितने ही आसियों की उम्मीदें चली गईं
कितनी ही यारियों का ठिकाना चला गया।।
मौला ने ले लिया उसे अपनी पनाह में
प्यारे हुसैन तेरा दीवाना चला गया।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
Comments
Post a Comment