सम्बन्धों  में  समरसताएँ  बनी  रहें

किन्तु प्रेम को सम्बन्धों का नाम न दो।

सत है चित है सदानन्द है तुम इसको

काम जनित उन्मादों के आयाम न दो।।


तुमको बचपन से यौवन तक देखा है

साथ तुम्हारा प्रतिदिन प्रति क्षण चाहा है।

किन्तु वासना जन्म नहीं ले सकी कभी

इस सीमा तक हमने धर्म निबाहा है।।


जो शिव है है वही सत्य वह सुन्दर भी

जो सुन्दर है केवल भ्रम कुछ पल का है।

पा लेने में खारापन आ सकता है

पर प्रवाह मीठापन गंगा जल का है।।


हम तुमको चाहें तुम भी हमको चाहो

सम्बन्धों से परे प्रेम यूँ पावन है।

जन्म जन्म तक प्रेम रहेगा कुछ ऐसे

जैसे धरती पर युग युग से जीवन है।।

सुरेशसाहनी

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