पहले से धारणा बना ली

प्रिय एक बार मिले तो होते।

हम भी तुमको प्यारे लगते

दो पग संग चले तो होते।।


तुमने मुझ को जब भी देखा

औरों की आंखों से देखा

औरों से मेरे बारे में सुना

खींच दी लक्ष्मण रेखा


रावण नहीं पुजारी दिखता

मैं पर तुम पिघले तो होते।।


उपवन उपवन तुम्हें निहारा

कानन कानन तुम्हें पुकारा

पर्वत जंगल बस्ती बस्ती

भटका यह पंछी आवारा


एक अकेला क्या करता मैं

दो के साथ भले तो होते।।


तुमको भाया स्वर्ण-पींजरा

मैं था खुले गगन का राही

मैं था याचक निरा प्रेम का

तुमने कोरी दौलत चाही


यदि तुम तब यह प्यार दिखाते

मन के तार मिले तो होते।।

सुरेशसाहनी कानपुर

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