उनके कितने ताम झाम हैं
शायद दरबारी गुलाम हैं।।
कविता शायद कभी लिखी हो
पर मंचों के बड़े नाम हैं।।
ये सलाम करते हाकिम को
तब खाते काजू बदाम हैं।।
अपने हिस्से मूंगफली के
दाने खाली सौ गराम हैं।।
सत्ता के हित में भटगायन
बड़े लोग हैं बड़े काम हैं।।
ये एमपी के सेवक ठहरे
अपने मालिक सियाराम हैं।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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