अब कोई साहिबे-किरदार न ढूंढ़े मुझमें।
मेरे जैसा कोई हर बार न ढूंढ़े मुझमें।।
मुंसिफ़ाना हूँ तबीयत से सभी से कह दो
कोई अपना ही तरफगार न ढूंढ़े मुझमें।।
ग़ैर के घर हो भगतसिंह है चाहत जिसकी
उससे कह दो कोई यलगार न ढूंढ़े मुझमें।।
होंगे बेशक़ कई बीमार शहर में उसके
हुस्न वैसा कोई बीमार न ढूंढ़े मुझमें।।
इतनी मुश्किल से शफ़ा दी मेरे हरजाई ने
अब कोई इश्क़ के आसार न ढूंढ़े मुझमें।।
यूँ भी मजलूम हूँ मजदूर हूँ दहकां भी हूँ
कोई परधान सा ऐयार न ढूंढ़े मुझमें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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