आदमी दो दिन इधर दो दिन उधर ज़िंदा रहा।

किन्तु राक्षस आदमी में उम्र भर ज़िंदा रहा।।


जिस किसी भी शख़्स की आंखों का पानी मर गया

उसको ज़िंदा मान लें कैसे अगर ज़िंदा रहा।।


एक अबला  की किसी वहशी ने इज़्ज़त बख्श दी

यूँ  लगा उस शख़्स में इक जानवर जिन्दा रहा।।


फिर से जिंदा हो न् जाये जानवर में आदमी

हाँ यही डर रातदिन शामोसहर ज़िंदा रहा।।


उम्र के हर मोड़ पर माँ बाप याद आते रहे

मैं वो बच्चा था जो मुझमे उम्र भर जिन्दा रहा।।


बंट चुके आँगन में दीवारों के जंगल उग गए

फिर भी बूढ़े बाप की आँखों मे घर जिन्दा रहा।।


दिल बियावां जिस्म तन्हा औ मनाज़िर अजनबी

साहनी की सोच में फिर भी शहर ज़िंदा रहा।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है