काश फिर से कोई पीने को वज़ह मिल जाये

कैफ़े-ग़म ही सही जीने को वज़ह मिल जाये।।


ज़ख़्म तमगे हैं ज़माने को दिखाने के लिए

कौन चाहे है कि सीने को वजह मिल जाये।।


फिर मज़ा क्या है अगर जीस्त में तकलीफ़ न् हों

गो भँवर हो तो सफीने को  वज़ह मिल जाये।।


सुरेश साहनी कानपुर

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