तुम्हे अंदाज़-ए-उल्फ़त नहीं है।

ये कहने में कोई उज़रत नहीं है।।

कभी तो हाले-दिल मेरा समझते

तुम्हें क्या इतनी भी फुरसत नहीं है।।

चलो तुम खुश रहो अपनी बला से

हमें भी अब कोई दिक्कत नही है।।

जहाँ एहसास है हाज़िर सुखन के

अमीरी है  वहां  गुरबत नही है।।

मुहब्बत और अपनापन भी है धन 

के दौलत ही कोई दौलत नही है।।

Suresh Sahani

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