सब फरिश्ते सब मलायक हों ये मुमकिन है तो कह।
उज़्र क्या तेरी नज़र में रात भी दिन है तो कह।।
तब मुवक्किल कह रहा था गाय गाभिन थी तो थी
आज मुंसिफ़ कह रहा है बैल गाभिन है तो कह।।
हमने माना इश्क़ फ़ानी है कहाँ इन्कार है
फिर भी दिल पर हाथ रख के हुस्न साकिन है तो कह।।
तेरा दावा है कि दुनिया आज की ख़ुदगर्ज़ है
मान लेंगे हम तुझे पर तू जो मोहसिन है तो कह।।
मुझको तेरे झूठ पर भी है बला का ऐतबार
पर मेरी उल्फ़त पे तुझको अब भी लेकिन है तो कह।।
मैंने कब बोला तुझे क़ायम हूँ मैं ईमान पर
उस बुते-काफ़िर पे मर के भी तू मोमिन है तो कह।।
सुरेश साहनी, कानपुर
साकिन/ स्थिर, वाशिंदा
ज़ामिन / ताबीज़ , ज़मानत लेने वाला
मोहसिन/ सहायक, परोपकारी
बुते-क़ाफ़िर/ भटकाने वाला सौंदर्य
मोमिन/ विश्वास करने वाला,मुसलमान
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