आशना होने से पहले ही ख़फ़ा होता रहा।

इस तरह हर दोस्त मिलते ही जुदा होता रहा।।


उम्र भर इंसाफ पाने को फिरे हम दरबदर

उन की ख़ातिर रात में भी फैसला होता रहा।।


जितने अपने देवता हैं सब के सब हैं संगदिल

बेवजह मैं इनकी ख़ातिर आईना होता रहा।।


लोग डर से या अक़ीदत से उन्हें पूजा किये

इस तरह हर एक पत्थर देवता होता रहा।।


इस क़दर चाहा कि उसको बदगुमानी हो गयी

मैं वफ़ा करता रहा वो बेवफा होता रहा।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है