आस का दीया बाले रख।
दर्द दिलों में पाले रख।।
जिनसे नफरत बढ़ती है
उन बातों को टाले रख।।
सबकी रात चरागाँ कर
सबकी सिम्त उजाले रख।।
मौला से बस एक दुवा
सबके हाथ निवाले रख।।
नरमी शबनम वाली रख
तेवर तूफां वाले रख।।
इसमें कोई फर्क न कर
सब को देखे भाले रख।।
मंजिल कब नामुमकिन है
पहले पॉँव में छाले रख।।
--अदीब कानपुरी(suresh sahani)
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