जहां नजदीकियां बढ़ने लगी हैं।
दिलों में दूरियां बढ़ने लगी हैं।।
जमीं के लोग छोटे दिख रहे हैं
मेरी ऊंचाईयां बढ़ने लगी हैं।।
हम अपनी खामियां देखें तो कैसे
नज़र में खामियां बढ़ने लगी हैं।।
हमारा ताब ढलना चाहता है
इधर परछाईयाँ बढ़ने लगी है।।
सम्हलने के यही दिन है मेरी जां
बहुत बदनामियाँ बढ़ने लगी हैं।।
हमें मालूम है तौरे-ज़माना
मग़र हैरानियाँ बढ़ने लगी हैं।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
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