क्या कहें हम फिर मसूरी रास्ते में आ गयी।
दिल की फिर दिल्ली से दूरी रास्ते में आ गयी।।
हमने चाहा था मुक़म्मल प्यार से देखें तुम्हें
वक़्ते-फुरक़त खानापूरी रास्ते मे आ गयी।।
हाय रे ये उम्र भर की पेट की मज़बूरियां
ज़िम्मेदारी फिर ज़रूरी रास्ते मे आ गयी।।
उसका मेरा प्यार यूँ परवान चढ़ते रह गया
कुछ अनायें कुछ गुरूरी रास्ते मे आ गयी।।
हम अदब की मंजिलों पर जा रहे थे बेखबर
आड़े अपनी बेशऊरी रास्ते मे आ गयी।।
मेरा परमोशन अचानक होते होते रुक गया
ये कि उनकी जी हुजूरी रास्ते मे आ गयी।।
जान देने में हमें दिक्कत न कोई थी मगर
वस्ल की हसरत अधूरी रास्ते मे आ गयी।।
Suresh sahani, kanpur
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