जब अंतस्थल के  कोने में

प्रेम अंकुर कोई फूट पड़े

तब तुम्हें याद मैं आऊंगा।

दिल की गहराई से आकर

हसरत कोई अंगड़ाई ले

तब तुम्हें याद मैं आऊंगा।।


यदि मैंने कभी हृदयतल से

चाहा तो तुमको चाहा था

यदि तुमने कभी स्वप्न में भी

मेरे बारे में   सोचा था


यदि क्षणिक स्नेह का छोह तुम्हें

 दो पल भी भावाकुल कर दे

तब तुम्हें याद मैं आऊंगा।।


मैं कितनी रातें जागा हूँ

मैं कितनी नींदें सोया हूँ

अगणित तारे गिन डाले हैं

अगणित सपनों में खोया हूँ


यदि मेरी असफलताओं के

अहवाल तुम्हें व्याकुल कर दें

तब याद तुम्हें मैं आऊंगा।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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