मौत हिन्दू मुसलमा नहीं देखती।

मौत आदम ओ हव्वा नहीं देखती।।

मौत आती है सबको बराबर सनम

मौत अदना कि आला नहीं देखती।।


आज उनकी हुई और तुम हँस दिए

कल तुम्हारी हुई वे हँसेंगे सनम

आज तुम हो फंसे मौत के जाल में

कल इसी जाल में वे फँसेंगे सनम


मौत इनका कि उनका नहीं देखती।

मौत अपना पराया नहीं देखती।।


एक से एक आला कलंदर हुए

जाने कितने ही भैरव मछिन्दर हुए

लाख कारूँ हुए हाथ खाली गए

वे हलाकू हुए या सिकन्दर हुए


जिन्दगी के बड़े थे मदारी ये सब

मौत लेकिन तमाशा नहीं देखती।।


कोई आलिम बड़ा है तो फ़ाज़िल कोई

है कोई पीर-ओ- मुर्शिद तो कामिल कोई

कोई घर तो कोई राह में मर गया

कुछ सफ़र में मरे पा के मंज़िल कोई


मौत हसरत या हासिल नहीं देखती

मौत खोया कि पाया नहीं देखती।।

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