तुम अपना दीवाना कर दो।

या दिल से बेगाना कर दो।।


आज़िज़ हूँ इस लुकाछिपी से

शोहरत आम फ़साना कर दो।।


झूठे  मत दो  हमे  दिलासे 

हाँ  सीधे सीधे  ना कर दो।।


तर्क करो ये रस्मो-तकल्लुफ

कुछ ऐसा याराना कर दो।।


मेरी ख़ातिर अब तो अपने

होठों को पैमाना कर दो।।


इंतज़ार की हद होती है

तुम क्या सिर्फ़ बहाना कर दो।।


बंजारा हूँ नाम से मेरे

दिल का दौलतखाना कर दो।।


सुरेश साहनी, कानपुर।

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