जिन मक़ामात से गुज़रा हूँ मैं।

इम्तेहानात से गुज़रा हूँ मैं।।

मैं न टूटा तो उन्हें हैरत है

हाथ दर हाथ से गुज़रा हूँ मैं।।

कैसे कैसे थे निगाहों में तेरी

जिन सवालात से गुज़रा हूँ मैं।।

जिस से बचने की तमन्ना पाली

हाँ उसी बात से गुज़रा हूँ मैं।।

बोझ से जिस्म दबा जाता है

यूँ इनायात से गुज़रा हूँ मैं।।

होने वाली थी क़यामत न हुयी

वस्ल की रात से गुज़रा हूँ मैं।।

सुरेश साहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है