ये न पूछो किधर गया पानी।
उसकी आँखों का मर गया पानी।।
जेहन से ही उतर गई नदिया
इस तरह कुछ उतर गया पानी।।
प्यास से कोई मर गया सुनकर
सबकी आंखों में भर गया पानी।।
सिर्फ उतना उधर नदी घूमी
बह के जितना जिधर गया पानी।।
झील बनकर उदास रहता है
उस नदी का ठहर गया पानी।।
आख़िरी सांस ली नदी ने फिर
अपनी हद से गुज़र गया पानी।।
मोती मानुष के साथ चूना भी
क्या बचेगा अगर गया पानी।।
जाने कितने शहर गयी गंगा
जाने कितने शहर गया पानी।।
सुरेश साहनी, अदीब
कानपुर
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