मेरे दुश्मन सभी ख़ुद्दार निकले ।
फरेबी तो पुराने यार निकले।।
दवा लेते कहाँ से आशिक़ी की
शहर में सब तेरे बीमार निकले।।
ज़रूरत क्या है हम दुश्मन तलाशें
अज़ल से आप ही गद्दार निकले ।।
मेरी आँखों में ये महसूस कर लो
ये मुश्किल है ज़ुबाँ से प्यार निकले।।
कभी ऐसा न हो ये हक़बयानी
मुहब्बत के लिए तलवार निकले।।
क़लम कर देंगे वो सबकी जुबानें
न भूले से कभी यलगार निकले।।
हिकारत थी मुझे ग़ैरों से लेकिन
मेरे क़ातिल मेरे सरकार निकले।।
सुरेश साहनी,कानपुर
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