खिज़ां की भी कोई निशानी नहीं थी।
क़यामत भी भी तर्जुमानी नहीं थी।।
अमां यार तुम चल दिये जाने कैसे
ये दुनिया अभी इतनी फ़ानी नहीं थी।।
यक़ी कैसे आये कि अब तुम नहीं हो
चले आओ चुपचाप बेशक़ कहीं हो।।
सुरेश साहनी,कानपुर
खिज़ां की भी कोई निशानी नहीं थी।
क़यामत भी भी तर्जुमानी नहीं थी।।
अमां यार तुम चल दिये जाने कैसे
ये दुनिया अभी इतनी फ़ानी नहीं थी।।
यक़ी कैसे आये कि अब तुम नहीं हो
चले आओ चुपचाप बेशक़ कहीं हो।।
सुरेश साहनी,कानपुर
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