देश में निषाद संस्कृति अथवा फिशरमैन कम्युनिटी भारत की जनसंख्या में एक अच्छी भागीदारी रखती रही है।अकेले उत्तर प्रदेश में ही देखा जाए तो कहार,गोंड, तुरैहा,  सोरहिया,निषाद, केवट , बिन्द, मांझी मंझवार,नागर,धीवर,किसान  ,धुरिया कश्यप और मल्लाह वर्माआदि अनेक जातियों उपजातियों में बँटा हुआ यह समाज लगभग 10.5 प्रतिशत है। यदि संख्या में लोधी राजपूत भी जोड़े जाएं तो यह संख्या बढ़कर 14%चली जाती है।लगभग यही स्थिति बिहार में भी है  । जो किसी भी राजनैतिक दल की गणित को आसानी से बना बिगाड़ सकती है।पौराणिक सन्दर्भों में राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करने वाले श्रृंगी ऋषि निषाद ही थे।कालांतर में उनके पुत्र निषादराज गुह्य मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम के मित्र बनें और राज्य कोलियवन तथा श्रृंगबेरपुर को काशी की भाँति अयुद्ध क्षेत्र अथवा अयोध्या का मित्र राज्य माना गया।

 महाभारत काल मे राजमाता सत्यवती और उनके विद्वान पुत्र भगवान वेदव्यास के साथ साथ अंगराज कर्ण के पिता अधिरथ, राजा हिरण्यधनु और वीर एकलव्य,कश्यप राजा हिडिम्ब और घटोत्कच, मत्स्यराज विराट, अवन्ति के बिन्द ,महिष्मति के अनुविन्द ,   मगधराज जरासंध आदि अनेक राजाओं के निषाद संस्कृति से जुड़े होने के उल्लेख मिलता है। सिकन्दर के आक्रमण का प्रथमतः विरोध करने वाला यह समाज मुग़लकाल में आपराधिक समाज घोषित कर दिया गया। कालांतर में अंग्रेजी हुकूमत ने भी इन्हें क्रिमिनल कास्ट्स की सूची में डाल दिया।आज़ादी के बाद सम्भवतः सन 1952 में इस समाज को आपराधिक सूची से बाहर किया गया।तब से यह समाज राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा में आने के लिए संघर्ष कर रहा है।किंतु सभी दलों द्वा

रा इस समाज के प्रतिनिधित्व की उपेक्षा कर रहा है।


#साभार  - समन्वयवादी चिंतक ,कवि एवं समाजसेवी सुरेश साहनी कानपुर के वाल से

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