हम  अगर  बावरे नहीं होते।

वो  मेरे सांवरे   नहीं होते।।

फिर मेरी याद आ गयी होगी

घाव  यूँ ही  हरे   नहीं होते।।

प्यार हर एक से नहीं होता

आम  पर  संतरे  नहीं होते।।

प्यार चलता है सीधी राह लिए

प्यार  में  पैतरे   नहीं  होते।।

ग़ैर से ज़िक्र मत किया करिये

इश्क़ पर मशवरे नहीं होते।।

प्यार दीन-ए-ज़हान हो जाता

हम अगर सिरफिरे नहीं होते।।

इससे बढ़कर कोई शराब नहीं

 वरना आशिक़ बुरे नहीं होते।।

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है