मैं तुम को लिखने की कोशिश करता हूँ

तुम भी कुछ कहने की कोशिश किया करो

मैं तुमको पढ़ने की कोशिश करता हूँ

तुम किताब के पन्नों जैसा खुला करो....


कितनी बातें आज तलक अनसुलझी हैं 

तुम मेरी हर उलझन सुलझा सकती हो 

और अगर चाहो तो इस यायावर मन को  

तुम अपनी जुल्फों में उलझा  सकती हो


मुझे पता है केवल तुम दे सकती हो

इस बैरागी भटकन को ठहराव नया

इन शब्दों के ढेरों को दे सकती हो

नीरसता से हटकर कोई भाव नया


तुम गूंगी आवाज़ों को दे सकती हो

सुन्दर सुर संगीत नया अंदाज़ नया

पंख कटे भावों को भी दे सकती हो

तुम हँस कर आकाश नया परवाज़ नया


मैं तुमको फिर फिर पुकारना चाहूँगा

तुम केवल सुनने की कोशिश किया करो

प्रश्न नहीं पर इस मन की अकुलाहट को

बस उत्तर देने की कोशिश किया करो......

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है